शीर्षक: आय से परे: भारत और संसार में विषमताओं तथा गरीबी उन्मूलन की “क्षमता” दृष्टिकोण से पुनर्विचार

 शीर्षक: आय से परे: भारत और संसार में विषमताओं तथा गरीबी उन्मूलन की “क्षमता” दृष्टिकोण से पुनर्विचार



परिचय


आज के संसार में जहाँ आर्थिक वृद्धि अभूतपूर्व रही है, वहीं असमानता और गरीबी भी गहराई तक मौजूद है। इसलिए सवाल सिर्फ यह नहीं कि क्या हम बराबरी के पक्षधर हैं, बल्कि यह होना चाहिए: किस चीज़ में बराबरी? अमर्त्य सेन की इस अवधारणा में ज़ोर बस इस बात पर है कि इंसान क्या कर सकता है और कैसा जीवन जी सकता है, सिर्फ यह नहीं कि उसके पास क्या है या वह कितना ‘खुश’ है।



1. विविध मानवीय स्थितियाँ: एकसमानता की सोच मिथ्या है


लोगों के बीच ज़रूरी नहीं कि केवल दौलत, उम्र या शिक्षा में फर्क हो—स्वास्थ्य, समाज में स्थिति, भाषा-अवरोध, भौगोलिक बाधाएँ आदि भी असमान अवसरों और संभावनाओं को जन्म देते हैं।

   •   विश्व उदाहरण: अमरीका में समान आय होने पर भी अश्वेतों के स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा श्वेतों से काफी कम हैं।

   •   भारतीय उदाहरण: बिहार की किसी गांव की एक शिक्षित लड़की और संसाधनहीन लड़की में फ़र्क़ दिखता है, चाहे उनकी आमदनी समान हो।


इसलिए इंसान की विविधता से जुड़ी स्थिति को नज़रअंदाज़ कर केवल ‘सभी बराबर’ कहना असमानता को छुपा देता है।



2. “कौन सी बराबरी?” — आय, खुशी या क्षमता?


बराबरी तभी मायने रखती है जब हम जानें किस चीज़ में बराबरी की बात हो रही है।

   •   शिक्षा, स्वास्थ्य और सुविधाओं जैसी क्षमताओं पर ध्यान देना ज़रूरी है।

   •   भारत में MGNREGA, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, उज्ज्वला योजना, और आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम आय या खुशी की सीमित सोच से आगे जाकर जीवन की वित्तीय, स्वास्थ्य और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति पर काम करते हैं।


विश्लेषण: आय के बराबर होने पर भी बाधाओं (जैसे शिक्षा-भेद, स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता) से असली अवसरों की कमी रहती है।



3. क्षमताओं (Functionings) और क्षमता (Capability) का मूल्यांकन

   •   Functionings (कार्य): आप क्या कर पा रहे हैं—जैसे सकुशल खाना, पढ़ना-लिखना, सामाजिक भागीदारी।

   •   Capability (क्षमता): क्या वास्तव में इन कार्यों को करने की आपकी स्वतंत्रता है?


उदाहरण: दो छात्र पास हुए, लेकिन एक ने बेहतर स्कूल, कोचिंग, या इंटरनेट का उपयोग किया; दूसरे को नहीं। परिणाम तो बराबर हो सकता है, लेकिन क्षमता में गहरा अंतर होता है।


भारत में मिड डे मील से बच्चों को स्कूल आने का प्रोत्साहन तो मिलता है, मगर जिस बच्ची को सुरक्षा या सुविधाएँ न हों, उसकी क्षमता सीमित ही रहती है।



4. सफलता (Achievement) बनाम स्वतंत्रता की क्षमता


केवल नतीजे देखकर असली स्वतंत्रता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता—सफलता का मतलब होना चाहिए:

   •   क्या सक्षम होकर परिणाम हासिल किया?

   •   क्या स्वतंत्र रूप से विकल्प चुन पाए?

   •   या मजबूरी, सीमाओं या भय के बीच जीना पड़ा?


भारतीय उदाहरण:

राजस्थान की ग्रामीण महिला को भुगतान की नौकरी मिल जाए, लेकिन घर का काम और सुरक्षित यात्रा न होने पर उसकी ‘क्षमता’ अधूरी ही रहेगी।



5. उपयोगिता (Utility) के संकट


जब आप खुशी या संतुष्टि को ही माप मान लें, तो लोग अपनी गरीबी या अन्याय को स्वीकारने की प्रवृत्ति बना लेते हैं—और रिपोर्ट करते हैं कि “जी रहे हैं जी”, लेकिन ये असली स्थिति नहीं होती।

   •   घटना: दलित और आदिवासी लड़कियाँ अपनी कठिनाई को ‘सामान्य’ मान करती हैं; लेकिन यह उनके क्रमिक अवसरों की अभाव को छुपाता है।

   •   इसलिए उपयोगिता मापना पर्याप्त नहीं है—यह अक्सर गहराई से समाविष्ट असमानता को ढक देता है।



6. भारत में गरीबी उन्मूलन की योजनाएँ और उनका मूल्यांकन


मुख्य योजनाएँ और उनके योगदान

   •   MGNREGA — ग्रामीण आय एवं रोजगार पर केंद्रित, लेकिन महिलाओं के आने को सुविधाएँ कम हैं।

   •   PDS और एनएफएसए — ज़रूरी खाद्य सुरक्षा functionings देता है, लेकिन राशन कार्ड, वितरण भ्रष्टाचार और पहुँच की समस्याएँ रोक बनती हैं।

   •   आयुष्मान भारत — जीवनरक्षक स्वास्थ्य सुविधा की क्षमता देता है।

   •   उज्ज्वला योजना — स्वच्छ रसोई गैस मुहैया कराकर बच्चों के स्वास्थ्य और समय की बचत functionings में सहायक है।

   •   बेटी बचाओ–बेटी पढ़ाओ — शिक्षा में लैंगिक विभाजन को तोड़ने की अगुआई करता है।


क्षमता के अनुसार विश्लेषण:

इन कार्यक्रमों का उद्देश्य नि:शुल्क सुविधा देना ही नहीं है, बल्कि उपयोग करने की वास्तविक क्षमता का निर्माण करना होना चाहिए—प्रशिक्षित स्टाफ, महिला-उन्मुख परिवहन, ऑनलाइन/भाषीय मदद, सामाजिक स्वतंत्रता।



7. निष्कर्ष: असली समानता की राह

   •   सामाजिक नीति चाहिए कि अप्रत्याशित फरक मानने की प्रवृत्ति से हटकर, वास्तविक स्वतंत्रता बढ़ाएं—महिला, दलित/आदिवासी, LGBTQ+, आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों में।

   •   क्षमता आधारित नीतियाँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्मान, विचारों की स्वतंत्रता, स्टार्ट‑अप या नौकरी‑वाली आज़ादी को सुरक्षा के साथ जोड़ें।

   •   यह एकमात्र ऐसा दृष्टिकोण है जो “कौन सी बराबरी?” और “किसके लिए समानता?” के सवालों का सबूत के साथ जवाब देता है।



अंतिम संदेश


सच्ची न्याय और समता केवल संसाधन या खुशियों में बराबरी नहीं है—बल्कि वह है जहाँ हर व्यक्ति को अपने जीवन को मतलबपूर्ण तरीके से जीने की स्वतंत्रता मिले।।

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